Poems

खग्रास

हमने की कोशिश अँधेरे को मिटाने की
हो गए मंत्रमुग्ध चमकते बल्बों की चौंधियाहट से
कि नहीं दिखता कुछ भी उस चमकते अँधेरे में,
गढ़ा एक नया अँधेरा जिसकी रोशनी में मिटा दिया दिन को
खिड़की पे खींच कर पर्दा
 
तुम्हारी निराशा को अपनी कोशिश में
ठीक करते करते मैं भूल भी गया अपनी ग़लतियों को
अगर तुम्हें मिले वह आशा का चकमक पत्थर इस घुप्प में टटोलते,
बंद कर देना बत्ती कमरे से बाहर जाते हुए
देखना चाहता हूँ अँधेरे को तारों की रोशनी में
बंद आँखों के भीतर ।
 
 
 
(रेत का पुल, 2012)