Poems

वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह (1960)

वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह।
रबड़ की चप्पल पहनकर मैं पिछड़ गया।
जाड़े में उतरे हुए कपड़े का सुबह छः बजे का वक़्त 
सुबह छः बजे का वक़्त, सुबह छः बजे की तरह।
पेड़ के नीचे आदमी था।
कुहरे में आदमी के धब्बे के अंदर वह आदमी था।
पेड़ का धब्बा बिलकुल पेड़ की तरह था।`
दाहिने रद्दी नस्ल के घोड़े का धब्बा,
रद्दी नस्ल के घोड़े की तरह था।
घोड़ा भूखा था तो
उसके लिए कुहरा हवा में घास की तरह उगा था।
और कई मकान, कई पेड़, कई सड़कें इत्यादि कोई घोड़ा नहीं था।
अकेला एक घोड़ा था। मैं घोड़ा नहीं था।
लेकिन हाँफते हुए, मेरी साँस हुबहू कुहरे की नस्ल की थी।
यदि एक ही जगह पेड़ के नीचे खड़ा हुआ वह मालिक आदमी था 
तो उसके लिए
मैं दौड़ता हुआ, जूते पहिने हुए था जिसमें घोड़े की तरह नाल ठुकी थी।