Poems

पानी का रंग

यहाँ तो बारिश होती रही लगातार कई दिनों से
जैसे वह धो रही हो हमारे दाग़ों को जो छूटते ही नहीं
बस बदरंग होते जा रहे हैं कमीज़ पर
जिसे पहनते हुए कई मौसम गुजर चुके
जिनकी स्मृतियाँ भी मिट चुकी हैं दीवारों से
 
कि ना यह गरमी का मौसम
ना पतझर का ना ही यह सर्दियों का कोई दिन
कभी मैं अपने को ही पहचान कर भूल जाता हूँ
 
शायद कोई रंग ही ना बचे किसी सदी में इतनी बारिश के बाद
यह कमीज़ तब पानी के रंग की होगी !
 
 
(रेत का पुल, 2012)