तीसरा पहर After Midnight

तीसरा पहर

मैंने तारों को देखा बहुत दूर
जितना मैं उनसे
वे दिखे इस पल में
टिमटिमाते अतीत के पल
अँधेरे की असीमता में,
सुबह का पीछा करती रात में
यह तीसरा पहर
 
और मैं तय नहीं कर पाता
क्या मैं जी रहा हूँ जीवन पहली बार,
या इसे भूलकर जीते हुए दोहराए जा रहा हूँ
सांस के पहले ही पल को हमेशा 
 
क्या मछली भी पानी पीती होगी
या सूरज को भी लगती होगी गरमी
क्या रोशनी को भी कभी दिखता होगा अंधकार
क्या बारिश भी हमेशा भीग जाती होगी,
मेरी तरह क्या सपने भी करते होंगे सवाल नींद के बारे में
 
दूर दूर बहुत दूर चला आया मैं
जब मैंने देखा तारों को - देखा बहुत पास,
आज बारिश होती रही दिनभर
और शब्द धुलते रहे तुम्हारे चेहरे से
 
(रेत का पुल, 2012)
 

After Midnight (The period between 12 and 3 a.m.)

I saw the stars very far
 
As far as I am from them
They were visible in this moment -
moments of the twinkling past
In the boundlessness of darkness
These hours
pursue the morning in the night
 
And I can't decide
Am I living this life for the first time?
Or repeating it forgetting while living
the first moment of breath always!
 
Does fish too drink water?
Or the sun feel hot?
Does light too see darkness?
Does rain too always get drenched?
Do dreams too ask questions about sleep like I do? 
 
I walked far, very far
When I saw the stars - saw them very near,
Today it kept raining all day long
and words kept being washed away from your face
 

Original Poem by

Mohan Rana

Translated by

Lucy Rosenstein with Bernard O’Donoghue Language

Hindi

Country

India